कम्पनी और साझेदारी में भेद/अंतर क्या है ? - 24x7DigitalLibrary

क्या कम्पनी और साझेदारी में अंतर है ? अगर है तो वो अंतर् क्या है ?

आपने पढ़ा कि कम्पनी विधि द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है और सीमित दायित्व

व शाश्वत उत्तराधिकार इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं। आइये अब यह अध्ययन करें कि

एक कम्पनी और एक प्रचलित व्यक्तियों की संस्था जिसे साझेदारी कहा जाता है में

क्या अन्तर है। इन दोनों के मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं:

  1. निर्माण की विधि (Mode Of Creation)

  2. सदस्यता (Membership)

  3. विधिक स्थिति (Legal Status)

  4. सदस्यों का दायित्व (Liability Of Members)

  5. शेयरों का हस्तांतरण (Transfer Of Shares)

  6. शाश्वत उत्तराधिकार (Perpetual Succession)

  7. प्रबंध (Management)

  8. एजेन्सी सम्बंध (Agency Relationship)

  9. सम्पत्ति (Property)

  10. सांविधिक अपेक्षाएं (Statutory Requirements)

  11. शक्तियां (Power)

  12. विघटन (Dissolution)

  13. विनियम विधान (Governing Legislation)

(1) निर्माण की विधि (Mode Of Creation) : कम्पनी की स्थापना केवल तभी

होती है जब वह कम्पनी अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत की जाती है। जबकि

एक साझेदारी का गठन साझेदारों में किए गए करार द्वारा होता है। साझेदारी

अधिनियम 4932 के अन्तर्गत साझेदारी फर्म का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है।

इसलिए एक साझेदारी फर्म जो पंजीकृत नहीं है वह अवैध नहीं है।

(2)सदस्यता (Membership)

(क) न्यूनतम : साझेदारी में सदस्यों की न्यूनतम संख्या दो होती है। जबकि

निजी कम्पनी के सदस्यों की न्यूनतम संख्या 2 है और सार्वजनिक

कम्पनी में 7 है।

(ख) अधिकतम : साझेदारी में अधिकतम संख्या 50 तक सीमित है प्राईवेट

कम्पनी में अधिकतम संख्या 200 है। (भूतपूर्व व वर्तमान कर्मचारियों को

छोड़कर और सयुंक्त रूप से अंशधारी एक सदस्य माने जाते हैं|) परन्तु

सार्वजनिक कम्पनी में सदस्यों की अधिकतम संख्या पर कोई सीमा नहीं है।

(3) विधिक स्थिति (Legal Status):
कम्पनी एक पृथक विधिक व्यक्तित्व के

रूप में होती है जबकि साझेदारी एक पृथक व्यक्ति नहीं हैं। साझेदारी, आमतौर

से फर्म कहलाती है और इसका सदस्यों से अलग विधिक अस्तित्व नहीं होता।

सारे साझेदारों को एक फर्म कहने का एक सरल तरीका है। कम्पनी क्योंकि

एक कानूनी व्यक्ति है इसलिए अपने सदस्यों से भिन्‍न है।

(4) सदस्यों का दायित्व (Liability Of Members): शेयरों द्वारा सीमित कम्पनी

में प्रत्येक शेयरधारी का दायित्व उस के पास शेयरों के मूल्य तक या उनके

द्वारा दी गई गारण्टी की राशि तक ही सीमित है। लेनदार केवल कम्पनी के

विरुद्ध कारवाई कर सकते हैं परन्तु सदस्य या सदस्यों के विरुद्ध कार्यवाही

नहीं कर सकते। असीमित दायित्व वाली कम्पनी के भी लेनदार सदस्य के

विरुद्ध व्यक्तिगत या संयुक्त रूप से कारवाई नहीं कर सकते क्‍योंकि कम्पनी

सदस्यों से पृथक है। वे कम्पनी के विरुद्ध कार्यवाही कर सकते हैं। परन्तु

साझेदारी में साझेदारों का दायित्व असिमित होता हैं और साझेदार फर्म के

ऋण के लिए संयुक्त व पृथक रूप से उत्तरदायी होते हैं। फर्म के लेनदार सभी

साझेदारों के लेनदार हैं और वे साझेदारों के विरुद्ध व्यक्तिगत और संयुक्त

रूप से कार्यवाही कर सकते हैं।

(5) शेयरों का हस्तांतरण (Transfer Of Shares) : सार्वजनिक कम्पनी के

शेयर स्वतंत्र रूप से हस्तांतरणीय हैं। एक निजी कम्पनी हस्तांरणीयता को

मना किए बिना अपने शेयरों की हस्तांतरणीयता पर कुछ पाबंदियां लगाती है।

एक साझेदारी में कोई भी साझेदार अन्य साझेदारों के सहमति के बिना अपने

शेयर का विक्रय या हस्तांतरण नहीं कर सकता।

(6) शाश्वत उत्तराधिकार (Perpetual Succession): एक कम्पनी के पास

शाश्वत उत्तराधिकार होता है। किसी सदस्य की मृत्यु, दिवालिया, पागल

या अलग होने से कम्पनी के अस्तित्व पर कोई असर नहीं पड़ता। लेकिन

साझेदारी में ऐसा नहीं है। जब तक कोई करार न हुआ हो, फर्म के किसी

साझेदार की मृत्यु, दिवालिया होना, इत्यादि से साझेदारी फर्म का अन्त हो

जाता है।

(7) प्रबंध (Management): कम्पनी के कार्यों का प्रबंध एक निदेशक मंडल करता

है। निदेशक मंडल में निदेशक साधारण सभा में शेयरधारियों द्वारा निर्वाचित,

नियुक्ति या पुनः नियुक्त किए जाते हैं। कम्पनी के कार्यों के प्रबंध में सदस्यों

की कोई भूमिका नहीं होती। दूसरी ओर साझेदारी में हर साझेदार फर्म के

प्रबंध में भाग ले सकता है, यदि साझेदारी विलेख या करार के इसके विपरीत

न दिया हो।

(8) एजेन्सी सम्बंध (Agency Relationship): शेयरधारी कम्पनी के एजेन्ट नहीं

होते और उनको कम्पनी को अपने कार्यों से बाध्य करने का कोई अधिकार

नहीं होता। साझेदारी फर्म में प्रत्येक साझेदार फर्म का और दूसरे साझेदारों

का एजेन्ट होता है। एक साझेदार दूसरे साझेदारों के कार्यों से बाध्य होता है

यदि वे कार्य उस के स्पष्ट या प्रत्यक्ष अधिकार में हों।

(9) सम्पत्ति (Property) : कम्पनी की स्थिति में कम्पनी की सम्पत्ति उस के नाम

होती है और इसका सम्पत्ति पर स्वामित्व होता है। यह किसी व्यक्तिगत

शेयरधारियों की नहीं होती | कम्पनी के जीवनकाल में किसी भी शेयरधारी का

कम्पनी की किसी भी सम्पत्ति में कोई विधिक या न्‍्यायोचित हित नहीं होता ।

लेकिन साझेदारी की स्थिति में साझेदार फर्म की सम्पत्ति के संयुक्त स्वामी

होते हैं।

(10) सांविधिक अपेक्षाएं (Statutory Requirements): एक कम्पनी के लिए

विभिन्‍न सांविधिक औपचारिकताएं पूरा करना आवश्यक है। जैसे सांविधिक

बहियां (Statutory Books) रखना व खातों का चार्टड अकाउन्टेंट से अंकेक्षण

करवाना इत्यादि। लेकिन साझेदारी फर्म का ऐसा कोई सांविधिक दायित्व नहीं

है।

(11) शक्तियां (Power) : कम्पनी की शक्तियां सीमानियम के उद्देश्य खंड में दी

होती हैं। उन का परिवर्तन अधिनियम में दिये हुए तरीके से होता है। साझेदारी

में साझेदार, साझेदारी विलेख (थ्ाप्रक्षशं० 6७००) में आपसी सहमति से

परिवर्तन सकते हैं।

(12) विघटन (Dissolution): कम्पनी के निगमित अस्तित्व का अन्त केवल कम्पनी

अधिनियम 2013 के प्रावधानों के अनुसार ही किया जा सकता है। एक

साझेदारी का विघटन किसी भी समय साझोदारों के करार से हो सकता है या

एच्छिक साझेदारी में एक भी साझेदार के जाने पर।

(13) विनियम विधान (Governing Legislation): कम्पनी, कम्पनी अधिनियम

2013, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड विनियमन और स्टॉक एक्सचेंज के

लिस्टिंग आवश्यकताओं (Listing Requirements) द्वारा विनियमित की जाती

है। जबकि साझेदारी भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 द्वारा विनियमित की

जाती है।